पिछले कुछ दिनों में कुछ बहुत बड़े घटनाक्रम हुए चाहे किसानों का दिल्ली में प्रदर्शन कहे या अमित शाह के बहुप्रचलित सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में जज रह चुके जस्टिस लोया की संदिग्ध मौत पर उनके परिवार द्वारा उठाये गये प्रश्न हो।पर दुखद है,की किसी ने भी इन्हें हैडलाइन बनते हुए नही देखा,मीडिया पर इन मुद्दों पर कही बहस नही हुई।
20 और 21 नवम्बर को देश् के हर कोने से हर विचारधरा के लगभग 185 किसान संगठनों ने मिलकर दिल्ली में प्रदर्शन किया।किसान मुक्ति संसद का आयोजन किया गया उनकी मुख्य मांगे पूर्णतः कर्ज मुक्ति और फसलो केे दाम स्वमिनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक लागत से 1.5 गुना ज्यादा हो ।इन पर सरकार संसद में क़ानून लाकर शीघ्र ही फैसला ले,चुकी मोदीजी ने चुनावो से पहले लगभग हर रैली में भी यही बात कही थी,लेकिन आज सत्ता के 3.5 साल बाद भी इस पर फैसला नही हो पाया है,वहीकिसानों की आत्महत्या लगातार बढ़ती जा रही है,उत्पादन बढ़ने के बाद भी किसान को मुनाफा नही मिल रहा है,क्योकि अनाज जब तक बाजारों में आता है तब तक इनका दाम बहुत ही कम हो जाता है।अभी कुछ दिन पहले ही टमाटर/प्याज को किसानों द्वरा सड़को पर फेंका जा रहा था क्योंकि दाम इतने कम थे की बाजार में लाकर बेचने पर किसान को जेब से पैसा लगता था और खेतों में छोड़ना या सड़को में फेक देना सस्ता पड़ता था,आज उसी टमाटर/प्याज पर विचोलिये और संग्रह करने वाले कई गुना मुनाफा कमा रहे हैं। यह अनिश्चितता क्यों आखिर देश के अन्नदाता के लिए अब तक कोई नीति क्यों नही बन पा रही है।आकड़ो के मुताबिक केवल 6% किसान ही देश् में MSP पर फसल बेच पाता है,लगभग 36 हजार करोड़ रु. का नुक्सान MSP में खरीद न होने के कारण इस बर्ष किसानों को हो चूका है वो भी तब जब मौजूदा MSP लाभकारी नही है, स्वमिनाथन आयोग के मुताबिक दाम हो तो ये आंकड़ा 2 लाख करोड़ तक पहुच जाता है।यदि ये पैसा सीधे किसानों को मिले तो क़र्ज़ में डूबे किसान की स्थिति में और आत्महत्या के आकड़ो में स्वतः ही सुधार नही आ जायेगा?
दूसरी और सबसे डराने वाली खबर रही सीबीआई की विशेष अदालत के जज ब्रजगोपाल लोया की मौत पर तीन साल बाद सवाल उठ रहे हैं.
कारवां पत्रिका ने जस्टिस लोया के रिश्तेदारों से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट छापी थी जिसमें कहा गया है कि उनकी मौत की परिस्थितियाँ संदेहास्पद हैं.
जज लोया की मौत एक दिसंबर 2014 को एक शादी में शामिल होने के दौरान नागपुर में हो गई थी.
अपनी मौत से पहले जस्टिस लोया गुजरात के चर्चित सोहराबुद्दीन शेख़ एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे थे।इस मामले में अन्य लोगों के साथ भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अभियु्क्त थे, अब ये केस ख़त्म हो चुका है और अमित शाह को दोषमुक्त क़रार दिया गया है.
जस्टिस लोया के घरवालों ने नोटिस किया कि उनके शर्ट के कॉलर पर खून के धब्बे थे, उनकी बेल्ट उल्टी तरफ मुड़ी हुई थी, पैंट का क्लिप टूटा हुआ था और सर के पीछे चोट थी। लेकिन इनमें से किसी भी बात का पोस्टमार्टम में जिक्र नहीं है। सोचिएगा कि हार्ट अटैक में ऐसी कौन सी चोट लगती है ? यह सब जाँच का विषय है परन्तु कैसी जाँच ?सवाल परिवार की तरफ से उठ रहे हैं इस वजह से सोहराबुद्दीन मामले में नागपुर पुलिस, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के पर शक के बादल गहरे हो जाते हैं। इस मामले की सुनवाई सीबीआई अदालत में चल रही थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि शुरू से आखिर तक इस मामले की सुनवाई एक ही जज करेगा। और जज हटाया नहीं जा सकता।
जज लोया की मौत के बाद सोहराबुद्दीन इनकाउंटर के केस को जस्टिस एम.बी. गोसावी के सूपुर्द कर दिया गया। जिन्होंने 15 दिनों के अंदर पूरे मामले की सुनवाई करते हुए 75 पन्ने का 30 दिसंबर 2014 को ऑर्डर जारी कर दिया। इस मामले में “अमित शाह” को क्लीनचिट दे कर उनको आरोपों से मुक्त कर दिया।
उपरोक्त मुद्दों को मैन स्ट्रीम मीडिया में जगह ही नहीं मिली और न हीं हैडलाइन और न हीं किसी डिबेट के योग्य समझा गया।न हीं अखबारों में कोई सुर्खियां बन पाई।सवाल यह है कि इन खबरों को प्रचारित करने से क्यों रोका जा रहा है? कौन रोक रहा है?किसे इससे फायदा है और क्यों?